छत्तीसगढ़ी भाषा और लोकसंस्कृति को नई उड़ान: प्रांतीय सम्मेलन में गूंजे सादरी और कुडूख के स्वर
से अधिक साहित्यकारों, भाषाविदों, शिक्षाविदों और कलाकारों ने भाग लिया।
इस ऐतिहासिक अवसर पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए छत्तीसगढ़ी भाषा और उसकी क्षेत्रीय बोलियों को सशक्त बनाने की दिशा में कई महत्वपूर्ण घोषणाएँ कीं। उन्होंने कहा—
"छत्तीसगढ़ी केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की आत्मा है। इसे सहेजना और आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा कर्तव्य है। हमारी सरकार छत्तीसगढ़ी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत 18 क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों का निर्माण हो चुका है, जिससे बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।"
मुख्यमंत्री साय ने यह भी घोषणा की कि छत्तीसगढ़ी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में लिखी गई पुस्तकों को प्रदेश के सभी स्कूलों की लाइब्रेरी तक पहुँचाया जाएगा। इससे छात्र-छात्राएँ अपने क्षेत्रीय साहित्य और भाषा की समृद्धि को आत्मसात कर सकेंगे।
सम्मेलन के मुख्य सत्र: भाषा और साहित्य का महाकुंभ
यह प्रांतीय सम्मेलन आठ प्रमुख सत्रों में विभाजित था, जिनमें छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य, मानकीकरण, स्थानीय बोलियों का महत्व, प्रशासनिक कार्यों में छत्तीसगढ़ी का प्रयोग और महिला साहित्यकारों की भूमिका जैसे विषयों पर गहन चर्चा हुई।
प्रमुख सत्रों में शामिल थे—
1. पुरखा के सुरता – छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य के पूर्वजों को नमन।
2. छत्तीसगढ़ी साहित्य में महिला साहित्यकारों की भूमिका – महिलाओं की साहित्यिक योगदान पर चर्चा।
3. छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन – प्रदेश के कवियों ने अपनी रचनाओं से समां बांधा।
4. छत्तीसगढ़ी भाषा का मानकीकरण – भाषा को एकरूपता देने के प्रयास।
5. छत्तीसगढ़ी भाषा और स्थानीय बोलियों का अंतर्संबंध – विभिन्न बोलियों के योगदान पर चर्चा।
6. प्रशासनिक कार्यों में छत्तीसगढ़ी का उपयोग – भाषा को सरकारी कार्यों में लागू करने के तरीके।
7. खुला सत्र – प्रतिभागियों के विचारों और सुझावों का मंच।
इन सत्रों में प्रदेश के जाने-माने कवि, लेखक, शिक्षाविद और भाषा प्रेमियों ने अपने विचार साझा किए और छत्तीसगढ़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को रेखांकित किया।
सादरी और कुडूख को मिली नई पहचान
सम्मेलन में जशपुर जिले के वरिष्ठ साहित्यकारों और शोधकर्ताओं ने सादरी और कुडूख जैसी क्षेत्रीय भाषाओं की महत्ता को रेखांकित किया।
डॉ. कुसुम माधुरी टोप्पो ने अपने वक्तव्य में बताया कि कुडूख भाषा न केवल जनजातीय संस्कृति की पहचान है, बल्कि इसका छत्तीसगढ़ी भाषा से गहरा संबंध भी है। इसे स्कूली शिक्षा में शामिल करना आवश्यक है।
मुकेश कुमार (जिला समन्वयक, जशपुर एवं सादरी शोधार्थी साहित्यकार) ने सादरी भाषा के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 के तहत क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा देने की पहल सराहनीय है। उन्होंने घोषणा की कि वे अपने शोध कार्यों के माध्यम से सादरी लोक साहित्य को नई दिशा देने का प्रयास करेंगे, जिससे छात्र-छात्राओं के अध्ययन-अध्यापन में सुविधा होगी।
इस सत्र में साहित्यकारों ने यह भी बताया कि कैसे सादरी और कुडूख जैसी भाषाएँ छत्तीसगढ़ी संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं और इनका उचित दस्तावेजीकरण और प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है।
छत्तीसगढ़ी भाषा के संवर्धन में साहित्यकारों की भूमिका
इस सम्मेलन में जशपुर जिले से 15 प्रमुख साहित्यकारों ने भाग लिया, जिनमें राजेंद्र प्रेमी (वरिष्ठ साहित्यकार एवं गीतकार) भी शामिल थे। उन्होंने कहा—
"छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा क्षेत्रीय बोलियों और भाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे छत्तीसगढ़ी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की दिशा में एक मजबूत नींव रखी जा रही है। इससे न केवल स्थानीय साहित्यकारों और कलाकारों को मंच मिलेगा, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव आएगा।"
सम्मेलन में जशपुर से शामिल अन्य साहित्यकारों में ज्योति चाणक्य, गायत्री देवता, गीता यादव सहित कई महत्वपूर्ण नाम थे।
सम्मान और सराहना: छत्तीसगढ़ी भाषा के सपूतों को मिला गौरव
सम्मेलन के दौरान विभिन्न साहित्यकारों और शोधकर्ताओं को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया गया।
मुकेश कुमार (जिला समन्वयक, जशपुर) एवं अन्य जिला के समन्वयकों को सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
विधायक पुरंदर मिश्रा ने उन्हें राजकीय गमछा पहनाकर सम्मानित किया।
सभी प्रतिभागियों को राजभाषा आयोग द्वारा बैग, डायरी और प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की सचिव डॉ. अभिलाषा बेहार ने आयोजन की सफलता के लिए सभी जिला समन्वयकों का आभार प्रकट किया और उनके प्रयासों की सराहना की। संचालक विवेक आचार्य ने छत्तीसगढ़ी में अपने वक्तव्य के माध्यम से छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों का मनोबल बढ़ाया एवं आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु किया जा रहे हैं प्रयासों को सारा और सभी साहित्यकारों को बधाई देकर उनका मनोबल बढ़ाया।
आगे की राह: भाषाई समृद्धि के लिए संकल्प
इस ऐतिहासिक सम्मेलन के अंत में सभी साहित्यकारों और भाषाविदों ने संकल्प लिया कि वे छत्तीसगढ़ी भाषा और इसकी बोलियों को सशक्त बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहेंगे। इस आयोजन ने स्पष्ट कर दिया कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और आत्मा का प्रतिबिंब है।
छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए यह सम्मेलन न केवल एक मील का पत्थर साबित हुआ, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएँ, तो मातृभाषा में शिक्षा और साहित्य को नए आयाम दिए जा सकते हैं।
"छत्तीसगढ़ी गुरतुर भाषा हे, ओला संजोए के जरूरत हे!"
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