✍️ प्रेमचंद जयंती 2025: जशपुर में ‘कफन’ की गूंज के साथ साहित्य, शिक्षा और चेतना का उत्सव
“साहित्य केवल मनोरंजन नहीं, वह समाज का दर्पण और परिवर्तन का औज़ार है। प्रेमचंद की ‘कफन’ जैसी रचनाएँ आज भी हमें झकझोरती हैं।” — मुंशी प्रेमचंद
🪶 मुंशी प्रेमचंद: साहित्य के यथार्थवादी पुरोधा
हिन्दी और उर्दू साहित्य के अग्रणी लेखक मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास लमही गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन लेखन के क्षेत्र में उन्होंने ‘नवाब राय’ और बाद में ‘प्रेमचंद’ नाम से प्रसिद्धि पाई।
✍️ प्रमुख विशेषताएं:
- यथार्थवाद, सामाजिक विषमता और मानवीय संवेदना को कथा साहित्य में लाने वाले पहले लेखक माने जाते हैं।
- उनकी कहानियों और उपन्यासों में किसान, श्रमिक, स्त्री, दलित और निम्नवर्ग की पीड़ा मुखर होती है।
- गोदान, गबन, सेवासदन, कफन, ठाकुर का कुआँ, पूस की रात, ईदगाह जैसी रचनाएँ आज भी पाठकों के मन को झकझोर देती हैं।
प्रेमचंद ने साहित्य को आम जन के जीवन से जोड़ा। वे न केवल कथाकार थे, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन के वाहक भी बने।
🎉 जब साहित्य मंच पर सजीव हो उठा: जशपुर में प्रेमचंद जयंती समारोह
दिनांक: 31 जुलाई 2025
स्थान: जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIET), जशपुर, छत्तीसगढ़
आयोजक: प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस), कुनकुरी इकाई
इस आयोजन ने सिर्फ साहित्यिक स्मरण नहीं, बल्कि शिक्षा, शोध, संवेदना और समाज के गहरे संबंधों को सामने लाया।
150 से अधिक विद्यार्थियों, शिक्षकों और साहित्यप्रेमियों की सक्रिय उपस्थिति ने यह सिद्ध किया कि प्रेमचंद आज भी जीवित हैं — अपने विचारों, पात्रों और यथार्थ के माध्यम से।
🏫 संस्थागत सहभागिता: शिक्षा और सृजन का संगम
कार्यक्रम में कुल 5 प्रमुख संस्थानों की सहभागिता रही, जो इस प्रकार हैं:
क्र. | भाग लेने वाले संस्थान |
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1 | स्वामी आत्मानंद हिंदी माध्यम उत्कृष्ट विद्यालय, जशपुर |
2 | शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय |
3 | स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय |
4 | सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय |
5 | जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIET), जशपुर |
✨ विशेष आकर्षण: ‘कफन’ का सजीव वाचन – संवेदना से साक्षात्कार
📖 वाचनकर्ता: श्रीमती सरोज संगीता भोय
(उप प्राचार्य, DIET जशपुर)
प्रेमचंद की कालजयी कहानी ‘कफन’ का मंचीय वाचन कार्यक्रम का सबसे प्रभावशाली और भावनात्मक क्षण रहा। कहानी के पात्र घीसू और माधव जब मंच पर उतरे, तो दर्शक न केवल कहानी सुन रहे थे, बल्कि उसे जी रहे थे।
🔍 वाचन की विशेषताएँ:
- आवाज़ में यथार्थ, अभिनय में संवेदना
- समाज की विडंबनाओं को अभिव्यक्ति
- विद्यार्थियों की आँखें नम, मन चिंतनशील
“श्रीमती सरोज संगीता भोय का वाचन इतना प्रभावशाली था कि 'कफन' अब केवल कहानी नहीं रही, वह एक अनुभव बन गई।”
🧠 क्विज प्रतियोगिता: ज्ञान, अभिव्यक्ति और प्रतिस्पर्धा
विषय: प्रेमचंद – जीवन, कृतित्व और विचार
7 टीमों ने भाग लिया, जिनमें से प्रत्येक ने प्रेमचंद की रचनाओं, पात्रों और विचारधारा पर शानदार उत्तर प्रस्तुत किए।
🏆 परिणाम:
स्थान | संस्था |
---|---|
🥇 प्रथम | SAGES हिंदी माध्यम |
🥈 द्वितीय | SAGES अंग्रेजी माध्यम |
🥉 तृतीय | MLB कन्या विद्यालय |
पुरस्कार: प्रमाण पत्र, डायरी, पेन, स्मृति-चिन्ह
👨🏫 मंच की गरिमा: विचार और संवाद
मुख्य अतिथि: श्रीमती सरोज संगीता भोय
विशिष्ट अतिथि: डॉ. एम. ज़ेडी. यू. सिद्दिकी, प्राचार्य, DIET
🧾 शोध संवाद वक्ता:
- डॉ. राजीव रंजन तिग्गा
- डॉ. रविकांत भगत
🌿 मुख्य बिंदु:
- प्रेमचंद के साहित्य में ग्रामीण भारत की यथार्थता
- पात्रों में वर्ग-संघर्ष, मानवीय पीड़ा और प्रतिक्रिया
- साहित्यिक शोध में विद्यार्थियों को प्रेरित करने वाले अनुभव
“प्रेमचंद का साहित्य शास्त्रीय अध्ययन नहीं, सामाजिक हस्तक्षेप है।” — शोध वक्ता
🤝 समर्पित संयोजन: आयोजन की रीढ़
नाम | दायित्व |
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डॉ. कुसुम माधुरी टोप्पो | अध्यक्ष, प्रलेस – समन्वय |
श्री मुकेश कुमार | सचिव – संयोजन |
सुश्री नंजू कुमारी | आयोजन समन्वय |
श्री राजेंद्र प्रेमी | तकनीकी संयोजन |
सुश्री कीर्ति किरण केरकेट्टा | संरक्षक मार्गदर्शक व आभार प्रदर्शन |
श्री एस.पी. भगत | संरक्षक,संस्थागत सहयोग |
श्री जॉन हैमिल्टन टोप्पो | लेखा व्यवस्था |
श्रीमती ममता सिन्हा | आयोजन समन्वय |
आभार प्रदर्शन सुश्री कीर्ति किरण केरकेट्टा ने आत्मीयता और भावुकता के साथ प्रस्तुत किया
🌟 प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाएँ:
“‘कफन’ को ऐसे सुना जैसे पहली बार जाना हो – हर शब्द दिल में उतरता गया।” — एक छात्रा, SAGES जशपुर
“प्रेमचंद अब हमारी सोच का हिस्सा बन गए हैं। आयोजन ने हमें खुद से सवाल पूछना सिखाया।” — छात्र, डाइट जशपुर
🪶 प्रलेस कुनकुरी: साहित्य से समाज तक
प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस), कुनकुरी इकाई का यह प्रयास केवल आयोजन नहीं, एक बौद्धिक-सामाजिक जागरण था। मंचीय वाचन, शोध संवाद और क्विज़ जैसी गतिविधियाँ दर्शाती हैं कि साहित्य केवल किताबों में नहीं, जीवन में भी होना चाहिए।
📚 निष्कर्ष: शब्दों की शक्ति से विचारों की क्रांति
31 जुलाई 2025 को जशपुर में यह देखा गया कि प्रेमचंद एक लेखक नहीं, एक विचारधारा हैं।
‘कफन’ एक कहानी नहीं, समाज का दस्तावेज़ है।
और प्रलेस एक संगठन नहीं, विचारों का सेतु है — विद्यालयों, महाविद्यालयों और समाज के बीच।
यह आयोजन प्रेमचंद को केवल स्मरण नहीं, बल्कि जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है।
“जब तक साहित्य में समाज का सच बोलेगा कोई प्रेमचंद, तब तक बदलाव की उम्मीद बनी रहेगी।”