गणतंत्र उत्साह का प्रतीक
गणतंत्र का तात्पर्य यहाँ हमारी भारतवर्ष के गणतंत्र दिवस से है 26 जनवरी 1950 को जब सविंधान लागु हुआ तब से लेकर वर्तमान तक इस दिवस को मानते आ रहें हैं।
वास्तव में गणतंत्र को आज उत्साह का प्रतिक बनते देखा है। हम अगर बात करें तो स्कूली बच्चों में यह पर्व उत्साह का संकेतक बनते जा रहा है। जिस गणतंत्र ने सामाजिक समरसता की भावनाओं को बढ़ाया है। गणतंत्र के पर्व में बच्चों में एक अजीब सा उत्साह देखने को मिला जो अन्य दिवस में देखने को नहीं मिलता है। इसी उत्साह को हमें सही दिशा देने की आवश्यकता है। गणतंत्र के पर्व में बच्चों की छुपी प्रतिभा के एक झलक देखने को मिली जिसका आभास मुझे पहले कभी नहीं था। उस प्रतिभा को देखकर लगा की बहुत सारा ज्ञान बच्चों पहले से भरा हुआ है बस उसको टटोलने की आवश्यकता है। बच्चों के पैरेंट्स उनके इस प्रतिभा को देखकर फूल नहीं समा रहे थे उनको भी अंदाजा नहीं था कि हमारे बच्चे इस प्रकार की गतिविधि कर सकते हैं। उनके गतिविधि का एक ही कारण हो सकता है उनके उत्साह अंतर मंथ से जगे हुए आवाज को उन्होंने अपने कल के माध्यम से प्रदर्शित किया जा सकता है। यदि हम उत्साह को उनके सपनो के रूप में सवारने का प्रयास करें तो उनके विकास के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचा सकते हैं।
गणतंत्र को उत्साह का प्रतीक मैंने इसलिए कि इस दिन टाइम टेबल के नहीं होते हुए भी सबसे पहले उठना उठाना और मुस्कुराता चेहरा लेकर के सबके सामने आना वास्तव में उत्साह एक पूर्व मेधा का प्रतीक नजर आता है उनके पूरे मेधा का दृष्टिकोण इसके उत्साह के माध्यम से हुआ प्रतीत होता है। जब मैं बच्चों से इस संबंध में बात की उन्होंने कहा कि यह सब कलाकृति संस्कृति बोलचाल पहनावा, नृत्य हमने स्वयं से सीखा है। जिसको मैंने कभी नहीं सिखाया वह कलाकृति गणतंत्र पर्व के दिन परिलक्षित होती हुई दिखाई पड़ी। वास्तव में गणतंत्र पर्व का का उत्साह प्रतिदिन होना चाहिए ताकि हम बच्चों के सीखने की लालच दिखाने की लाल को हम जागृत करके समाज के सामने प्रस्तुत कर सकें।
बच्चों की जिज्ञासा को हमेशा हम आगे बढ़ते रहें उनका नया मार्ग दिखाते रहें. इस उत्साह का उपयोग उनके जीवन शैली जीवन रचना एक अच्छा नागरिक बनने हेतु हम कर सकते हैं। गणतंत्र का पर्व वास्तव में उत्साह अर्थात पूरी ताकत के साथ अपनी पूरी कर्तव्य के साथ आगे आने को प्रेरित करता है।
बच्चों की खुशियां देखते ही बन रही थी, उसे दिन ना चाहते हुए भी सब लोग उत्साह के साथ नजर आ रहे थे। मैं जानना चाह रहा था कि इस उत्साह का प्रस्तुत होता कहां से है काश में अध्ययन अध्यापन में इस प्रकार के उत्साह जगह पता और बच्चों को सभी प्रकार के एजुकेशन से परिपूर्ण करता है पर ऐसा रोग होता नहीं है तो इस जिज्ञासा के कारण को खोजने प्रत्येक का टीचर का परम कर्तव्य होना चाहिए।
मैं बच्चों में प्रतियोगिता की भावना देखा जो सर्वांगीण विकास में सबसे ज्यादा सहायक हो रहा था। तो इस उत्साह को बनाए रखने में हमारी क्या-क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए, क्या-क्या उसमें ऐड कर सकते हैं, यह हमारे जीवन शैली में होना चाहिए। जब मैं बच्चों की जिज्ञासा को शांत किया तो बच्चे अपनी पूरी पूरी बातें मेरे साथ शेयर कर पा रहे हैं और अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पा रहे हैं। पता मैं कहां सकता हूं गणतंत्र वास्तव में उत्साह का प्रतीक है।
इसलिए के माध्यम से मैंने यह बताने का प्रयास किया कि बच्चों की उत्साह को हमेशा बनाए रखना है उन्हें कभी भी डिमोटिवेट नहीं करना है। आप इस लेख पर अपना सुझाव मुझे भेज सकते हैं, थैंक यू