रक्षाबंधन: रिश्तों का सबसे पवित्र उत्सव

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 🌸 रक्षाबंधन: रिश्तों का सबसे पवित्र उत्सव 🌸


भूमिका

सावन का महीना आते ही प्रकृति हरियाली से लिपट जाती है, खेत-खलिहान झूम उठते हैं, और घर-आँगन में त्योहारों की रौनक सजने लगती है। इसी पावन माह में आता है रक्षाबंधन – एक ऐसा पर्व, जो भाई-बहन के रिश्ते में अटूट विश्वास, स्नेह और समर्पण का प्रतीक है। यह केवल एक धागा नहीं, बल्कि भावनाओं का बंधन है, जो समय, दूरी और परिस्थितियों के पार जाकर भी अटूट रहता है।

रक्षाबंधन का इतिहास और उत्पत्ति

 आज बहनों ने कलाई पर बांधी राखी

रक्षाबंधन की कथा और परंपराएँ इतनी पुरानी हैं कि उनका उल्लेख महाभारत और पुराणों में भी मिलता है।

कुछ प्रमुख कथाएँ:

1. श्रीकृष्ण और द्रौपदी – महाभारत में वर्णित है कि जब श्रीकृष्ण की उंगली से खून निकलने लगा, तो द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया। इस बंधन ने कृष्ण को भावनात्मक रूप से द्रौपदी का रक्षक बना दिया।

2. रानी कर्णावती और बादशाह हुमायूँ – मध्यकालीन इतिहास में प्रसिद्ध है कि मेवाड़ की रानी कर्णावती ने बहादुर शाह के आक्रमण से बचाने के लिए हुमायूँ को राखी भेजी। हुमायूँ ने इसे अपना कर्तव्य मानकर मेवाड़ की रक्षा की।

3. देवताओं और दानवों की कथा – विष्णु पुराण में वर्णन है कि इंद्र की पत्नी शचि ने युद्ध में विजय के लिए इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा। उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी, और तभी से यह परंपरा लोकजीवन में रच-बस गई।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

1.रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन तक सीमित नहीं, बल्कि यह सभी रिश्तों में प्रेम और संरक्षण का प्रतीक है।

2.कई जगह बहनें अपने पिता, गुरु, या मित्र को भी राखी बांधती हैं।

3.पंजाब में इसे सलूनो और महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

4.नेपाल में इसे जनई पूर्णिमा कहते हैं, जहां पवित्र धागा बदलने की परंपरा है।

त्योहार की तैयारी

1.रक्षाबंधन से पहले का माहौल अपने आप में खास होता है:

2.बाजारों में रौनक – रंग-बिरंगी राखियाँ, सजावटी थाल, मिठाइयाँ, और उपहार की दुकानों पर भीड़।

3.घर की सजावट – बहनें पूजा की थाली में रोली, चावल, दीपक और मिठाई सजाती हैं।

4.मिठाइयों की खुशबू – लड्डू, बरफी, और गुलाबजामुन की महक पूरे घर को त्योहारमय बना देती है।

रक्षाबंधन की विधि

1. सुबह स्नान के बाद घर को साफ-सुथरा कर, पूजा स्थान सजाया जाता है।

2. बहनें थाली में राखी, अक्षत, रोली, दीपक और मिठाई रखती हैं।

3. भाई को तिलक, अक्षत, और राखी बांधकर मिठाई खिलाई जाती है।

4. भाई बहन को उपहार देता है और उसकी रक्षा का वचन देता है।

रक्षाबंधन के आधुनिक स्वरूप

1.आज के समय में रक्षाबंधन डिजिटल युग में भी अपनी मिठास बनाए हुए है:

2.दूर रहने वाले भाई-बहन ऑनलाइन राखी और गिफ्ट भेजते हैं।

3.वीडियो कॉल पर भी रक्षाबंधन का तिलक और शुभकामनाएँ दी जाती हैं।

4.कुछ लोग इसे पर्यावरण-हितैषी बनाते हुए बीज वाली राखी, कपड़े या ऊन की राखी का प्रयोग करने लगे हैं।

फिल्मों और साहित्य में रक्षाबंधन

1.हिंदी फिल्मों में रक्षाबंधन की कई भावुक झलकें दिखाई गई हैं:

2."भाई बहन का प्यार" पर आधारित गीत लोगों की आँखें नम कर देते हैं।

3.साहित्य में प्रेमचंद, हरिवंश राय बच्चन और सुभद्राकुमारी चौहान की रचनाओं में भी भाई-बहन के स्नेह का चित्रण मिलता है।

रक्षाबंधन और सामाजिक संदेश

1.यह पर्व सिर्फ रिश्तों की मिठास बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि समानता, एकता और संरक्षण का संदेश भी देता है।

2.कई संस्थाएँ रक्षाबंधन के दिन सैनिकों, पुलिसकर्मियों और समाजसेवियों को राखी बांधती हैं।

3.कई महिलाएँ वृक्षों को राखी बांधकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेती हैं।

व्यक्तिगत भावनाओं का संसार

1.हर घर में रक्षाबंधन का अनुभव अलग होता है:

2.बचपन में भाई के हाथ पर राखियों की भीड़ और जेब में ढेर सारे चॉकलेट-कैंडी।

3.बड़े होने पर राखी के साथ भावनाओं की गंभीरता और जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

4.शादीशुदा बहन के लिए मायके लौटने का यह एक सुंदर बहाना होता है।

एक प्रेरक कहानी

छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव कोनपारा की कहानी –

रीता और मोहित बचपन में अनाथ हो गए थे, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे का सहारा बनकर जिंदगी गुजारी। हर साल रक्षाबंधन पर रीता अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती और मोहित कहता – “तेरी हर मुस्कान मेरी जीत है।” आज मोहित दूर शहर में नौकरी करता है, लेकिन राखी के दिन वह सबसे पहले गांव पहुंचता है, चाहे कैसी भी परिस्थिति हो। यह कहानी बताती है कि रक्षाबंधन सिर्फ पर्व नहीं, एक वचन है – हर हाल में साथ निभाने का।

समापन संदेश

रक्षाबंधन हमें याद दिलाता है कि रिश्ते धागों से नहीं, दिलों से बंधते हैं।

यह पर्व हमें अपने संबंधों को समय देने, उन्हें संवारने और एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होने का अवसर देता है।

तो इस रक्षाबंधन, आइए हम न केवल अपनी बहन-भाई की रक्षा का वचन दें, बल्कि समाज, प्रकृति और मानवीय मूल्यों की रक्षा का भी संकल्प लें।


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